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मोधिया: विमुक्त जाति का सांस्कृतिक अध्ययन- Modhiya: Vimukt Jaati Ka Sanskrtik Adhyayan

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Specifications
Publisher: Adivasi Lok Kala Evam Boli Vikas Academy And Madhya Pradesh Cultural Institution
Author Parshuram Shukla
Language: Hindi
Pages: 292 (With B/W Illustrations)
Cover: HARDCOVER
10.5x8.5 inch
Weight 880 gm
Edition: 2019
ISBN: 9789383899456
HBL902
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Book Description

अपनी बात

भारत में सैकड़ों की संख्या में नट, कंजर, कुचबंदिया, हबूड़ा, कलन्दर, सांसी, वाघरी, मीना, बदक, भान्तू, बावरिया, सनौरिया, बिजौरिया, भार, बेढ़िया, चपरमंता, लुंगी पठान, करवल, सिकलीगर आदि अनेक ऐसी जनजातियाँ पायी जाती है, जो बंजारों की तरह जीवन जीते हुए इधर-उधर भटकती रहती है। प्रत्येक जाति के अलग-अलग पेशे है। कुछ जातियों के लोग बन्दर या भालू का नाच दिखाते हैं तो कुछ भेड़, बकरी, गाय आदि चराने का कार्य करते हैं। कुछ जड़ी-बूटियों का धंधा करते हैं, कुछ गीत गाकर भीख माँगते हैं। इनकी स्त्रियाँ अपने घरों में रस्सी, टोकरी, पंखा, चटाई आदि बनाने का कार्य करती हैं।

ये रेलवे स्टेशन, बस स्टैन्ड या किसी बड़े मैदान के निकट जहाँ पानी की सुविधा होती है, अपने डेरे लगा लेते हैं। कुछ समय तक वहाँ रुककर कार्य करते हैं और जैसे ही इनके कबीले के मुखिया का आदेश होता है, ये अपने डेरे बाँध, गधों पर सामान लाद कर आगे बढ़ जाते हैं। इनका सम्पूर्ण जीवन एक स्थान से दूसरे, फिर तीसरे इसी प्रकार भटकते हुए व्यतीत होता है। आजकल कुछ लोग गधों के स्थान पर पैसेन्जर ट्रेनों व बसों का उपयोग करने लगे हैं। इनमें जन्म-मृत्यु, विवाह जैसे महत्त्वपूर्ण प्रसंग भी इसी यात्रा के मध्य घटित होते हैं।

ब्रिटिश सरकार में घुमन्तू जातियों को इतना खतरनाक समझा जाता था कि उसने सन् 1871 में अपराधी जनजाति अधिनियम बनाकर अधिकांश घुमन्तू जातियों को अपराधी घोषित कर दिया। प्रकृति के इन लाड़ले पुत्रों पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगा दिये गये तथा इनका सम्पूर्ण जीवन नारकीय बना दिया गया। भारत की स्वतन्त्रता के बाद अनेक महान नेताओं के प्रयासों से सन् 1952 में अपराधी जनजाति अधिनियम समाप्त किया गया और इन्हें मुक्त कर दिया गया। तभी से ये जनजातियाँ विमुक्त जातियाँ कहलाने लगीं।

मोघिया भी एक विमुक्त जाति है। इसे मूँग, मोगी, मोगिया आदि नामों से भी जाना जाता है। उत्तरप्रदेश में मोधियों को बहेलिया कहा जाता है। इनकी संवैधानिक स्थिति भी अलग-अलग प्रान्तों में अलग-अलग है। मध्यप्रदेश सरकार ने इन्हें अनुसूचित जाति की सूची में रखा है तथा विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत इनका विकास कर रही है। उत्तरप्रदेश सरकार भी इन्हें अनुसूचित जाति मानती है तथा इन्हें विमुक्त जाति की श्रेणी में भी शामिल किया गया है।

इस विमुक्त जाति पर स्वतंत्र रूप से अभी तक कोई शोधकार्य नहीं हुआ है। इस जाति के सदस्य बंगाल, बिहार, उड़ीसा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश तथा मध्यप्रदेश में बड़ी मात्रा में पाये जाते हैं। मध्यप्रदेश में ये दतिया, टीकमगढ़, पन्ना, छतरपुर, सतना, रीवा, सीधी, शहडोल, रायसेन, सीहोर तथा भोपाल आदि स्थानों पर पाये जाते हैं। घुमक्कड़ प्रवृत्ति होने के कारण इनकी वास्तविक संख्या ज्ञात करना अत्यन्त कठिन कार्य है।

दतिया जनपद के गजेटियर में मोधियों को पारधी का पर्याय माना गया है।

1961 की जनगणना के अनुसार इनकी संख्या 72 बतायी गयी है। वर्तमान में इनके 217 परिवार हैं, जो दतिया जनपद के राजगढ़, रामनगर, डगरई तथा चितया (कोयला की बावड़ी) चार स्थानों पर स्थायी रूप से बस गये हैं। दतिया में पाये जाने वाले मोधियों की नातेदारी ग्वालियर सम्भाग के जौरासी, गंगापुर, बुलौआ, किटौरा, सिहारा तथा डबरा में, सतना सम्भाग के नागोद, रामपुर व बघेलान में, रीवा सम्भाग के डभोड़ा, जबलपुर सम्भाग के सिहोरा, शहडोल सम्भाग के उमरिया, शिवपुरी सम्भाग के पड़ौरा, कोलारस व रामनगर में, पूर्वी निमाड़ सम्भाग के हरदा में तथा इसके अतिरिक्त टीकमगढ़, सीहोर आदि स्थानों पर व उत्तरप्रदेश में झाँसी जनपद के एरच, सलयापुर, एट, कुलपहाड़ व सूपों में, बाँदा जनपद के शिवरापुर, करबी व मानिकपुर में, इलाहाबाद जनपद के शंकरगढ़ में तथा फतेहपुर, देहरादून, मथुरा, बिंदकी आदि स्थानों पर, राजस्थान के कोहा व जालखेड़ी में तथा महाराष्ट्र के चालीसगाँव में पायी जाती है।

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